शाहजहाँपुर के थाना कलान क्षेत्र में दैत्य गुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि पटना देवकली स्थित शिव मंदिर में तीसरे सोमवार को उमड़ी जबरदस्त भीड़...
शाहजहाँपुर के थाना कलान क्षेत्र में दैत्य गुरु शुक्राचार्य की तपोभूमि पटना देवकली स्थित शिव मंदिर में तीसरे सोमवार को उमड़ी जबरदस्त भीड़।सुरक्षा के नाम पर एक उपनिरीक्षक के साथ तीन कांस्टेबल मौजूद।
किसी के भी मुँह पर नही दिखा मास्क पुलिस बनी देखती रही मुख़्समदर्शक
Anchor~उत्तर प्रदेश के जनपद शाहजहाँपुर की तहसील कलान से करीब 12 किमी दूर पटना देवकली गाँव में बने प्राचीन मंदिर से कई पौराणिक प्रसंग जुड़े हैं। बुजुर्ग और श्रद्धालु बताते हैं। कि दैत्य गुरु शुक्राचार्य ने यहां तप किया था कभी आतंक का पर्याय रहे छविराम, बड़े लल्ला, रानी ठाकुर, कल्लू यहां जलाभिषेक कर घंटा चढ़ाने आते थे। हालाकि लगभग डेढ़ दशक पहले कटरी में दस्युओं का अंत हो गया। उनके चढ़ाए घटे भी अब यहा नहीं दिखते, लेकिन सावन में प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु आते हैं। मन्नत पूरी होने पर घटे बाधते हैं। हैंडपंप लगवाते हैं।
ऊंचे टीले पर बने मंदिर के गर्भगृह में आठ शिवलिंग हैं, जिनमें से एक पंचमुखी शिवलिंग स्वयंभू बताया जाता है, जिस पर शिव परिवार की आकृति है। महंत अखिलेश गिरि बताते हैं कि शुक्रचार्य ने यहा भगवान शिव की तपस्या की, जिससे प्रसन्न होकर उन्होंने दर्शन दिए थे। सात अन्य शिवलिंग शुक्राचार्य ने स्थापित किए थे।
बेटी के नाम पर पड़ा नाम
V/O~01 दरअसल मंदिर के पास में बड़ी सी झील सूख गई है जिसे शुक्र झील कहा जाता था महंत बताते हैं । कि शुक्राचार्य की बेटी देवयानी के नाम पर इस क्षेत्र का नाम अपभ्रंश होकर देवकली हो गया इसका जिक्र शिव पुराण में भी है। बारिश के समय अब भी कई बार पुरानी मूर्ति व वस्तुएं निकलती हैं। 80 के दशक में पुरातत्व विभाग की टीम ने सर्वे कर इस स्थान को पौराणिक माना था।
गिरि बताते हैं ।कि झील के दूसरी ओर बदायूं के उसावा के गाव शकरपुर में देवयानी कुआं था। वृषपर्वा की पुत्री शर्मिष्ठा ने अपनी सखी देवयानी को नाराज होकर इसमें धकेल लिया था, जिन्हें बाद में ययाति ने निकाला और देवयानी से उनका विवाह हुआ। मंदिर से दस किलोमीटर दूर उसावा में देवयानी का निवास था जो खेड़े के रूप में है। शकरपुर में कुआं समाप्त होने पर वहा के प्रधान ने उसके ऊपर देवयानी का मंदिर बनवा दिया। प्रतिवर्ष चैत्र में वहा भंडारा होता है
दैत्य गुरु शुक्रचार्य को को भगवान शिव ने दर्शन दिए थे वह स्वयंभू शिवलिंग के रूप में यहा विराजमान हैं। हमारे परिवार की 33वीं पीढ़ी मंदिर की सेवा कर रही है। इस बार पहला मौका होगा जब सावन में यहां कावंड़ नहीं चढ़ाई जाएगी।
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