*महामारी के चलते हुई एकलव्य-साधना* --- मिर्जापुर । जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग गुरु ही बताते हैं । यह लक्ष्य भौतिकता का नहीं...
*महामारी के चलते हुई एकलव्य-साधना*
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मिर्जापुर । जीवन में लक्ष्य की प्राप्ति का मार्ग गुरु ही बताते हैं । यह लक्ष्य भौतिकता का नहीं बल्कि परमानन्द के एक न्यून-अंश आनन्द का है। पदार्थों की प्राप्ति आनन्द की गारंटी नहीं है।
भौतिक जगत में रहते हुए अंतर्जगत में आनन्द और आह्लाद की अनुभूति ही जीवन का लक्ष्य माना गया है। इसके लिए मन को एकाग्र कर परमानन्द का चिंतन सरल और सुबोध रास्ता है।
*महाभारत में यही खोज हुई*
द्वापर में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को सांसारिक संघर्ष करते हुए स्थितिप्रज्ञ बनने का उपाय बताया। लक्ष्य भेदन के लिए गुरु द्रोणाचार्य ने अर्जुन को शस्त्रविद्या में पारंगत किया ।
*एकलव्य को तो प्रतिमा ने दक्ष किया*- शस्त्रविद्या में एकलव्य ने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की प्रतिमा बनाकर कुशलता अर्जित की । एकलव्य ने गुरु की मानस आराधना की ।
*क्यों मांगा अंगूठा*
कथा के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने एकलव्य का अंगूठा ले लिया । यह अंगूठा अंहकार-भाव का सूचक है। गुरु कभी क्षति नहीं पहुंचाता । अतः गुरु द्रोणाचार्य ने अहंकार में अकारण शस्त्रविद्या के प्रयोग न करने के लिए वचन लिया न कि अंगूठा कटवा लिया। एकलव्य का पैर से शस्त्र-संचालन का आशय ही विनम्रता का भाव दर्शाता है।
*कोरोना काल में एकलव्य गुरु-पूजा*
वर्तमान कोरोना काल में यही हो रहा है। एकलव्य की तरह गुरु-आश्रमों में पूजा हो रही है। महामारी की विवशताओं ने अंगूठा ही नहीं पैर भी काट लिए ताकि लोग गुरु-आश्रमों में न जा सकें ।
*स्वामी अड़गड़ानन्द जी महाराज के आश्रम में एकलव्य-आस्था*
सक्तेशगढ़ आश्रम में इस बार लाखोंलाख का जमावड़ा नहीं हुआ । लोग एकलव्य बन जहां हैं वहीं से आस्था व्यक्त कर रहे हैं । स्वामी जी बरचर (मध्यप्रदेश) में हैं। जबकि यहां नारद महराज ही रहे। आश्रम में रहने वाले संतों ने ही गुरुपूजा का रीति-रिवाज पूरा किया ।
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