कौशांबी जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां हिंदू परिवार के लोग पूरी सिद्दत से मुहर्रम का पर्व मानते है। गांव का हर इंसान प...
सिराथू तहसील के मोहब्बतपुर जीता गांव की तरफ जाने वाली सड़क इमामे हुसैन की सदाओं में डूबी है। यहां नफरत और मजहब की दीवार दरवाजे पर पहुंचते ही दम तोड़ देती है। यह तस्वीर इस बात की गवाह है हिन्दू परिवार जिस तरह पूरी सिद्दत से अपने त्यौहार मनाता है। उसी आदर और सत्कार से मुहर्रम में ताजियादारी भी करता है। यहां का हर इंसान अपने परिवार के साथ ताजिया को सम्मान के साथ रख इबादत करता है।
बात लगभग दो सौ साल पुरानी है। जब देश में अंग्रेजी हुकूमत बोलबाला था। अंग्रेज सरकार ने पानी के विवाद में हिंदू परिवार के लोगों को फांसी की सजा सुनाई थी। ग्रामीणों की मानें तो जब सजा का ऐलान होने के बाद आरोपियों को कोर्ट से जेल ले जाया जा रहा था तो रास्ते में आरोपियों ने रास्ते में ताजिया देखी थी। ताजिया देखते ही उन लोगों ने दुवा मांगी कि यदि उनकी सजा टल जाएगी तो वह भी अजादारी व ताजियादारी करेंगे। उनकी दुआ कबूल हुई और जिसका नतीजा है कि आज भी मोहब्बतपुर जीता गांव में हिन्दू परिवार के दर्जनों लोग मुहर्रम का पर्व पूरी शिद्दत से मानते है।
इमामबाड़े के पास लोग एकत्रित होकर नौहाख्वानी करते हैं। मातम भी करते हैं। नवई वाले दिन लंगर भी चलता है। दसई के दिन कर्बला में ताजिया दफन की जाती है। ताजिया दफन के दौरान ही मुस्लिम समुदाय के लोग आते हैं। पूरे गांव के लोग ताजिया उठाने के दौरान शामिल होते हैं। जैसे मुस्लिम समुदाय के लोग 10 दिन तक गमी के माहौल में रहते हैं, कोई नया काम नहीं करते हैं। ठीक इसी तरह हिन्दू परिवार में भी 10 दिन तक गमी का माहौल रहता है। ग्रामीणों की मानें तो मोहर्रम को लेकर उनके दिल में आस्था है। महिला, पुरुष व बच्चे 10 दिन तक गम के माहौल में रहता है। हालांकि इस दफा कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण के कारण न तो ताजिया रखी गई और न ही कोई आजदारी, सीनाजनी करता है। वर्षों से कायम यह परंपरा, आगे भी अनन्तकाल तक कायम रहेगी।
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