अम्बेडकर नगर भारतीय संस्कृति में पर्व-व्रत त्योहार की भरमार है। हर त्योहार का अपना एक महत्व होता है। कई ऐसे पर्व भी हैं जो हमारी सामाजिक औ...
अम्बेडकर नगर भारतीय संस्कृति में पर्व-व्रत त्योहार की भरमार है। हर त्योहार का अपना एक महत्व होता है। कई ऐसे पर्व भी हैं जो हमारी सामाजिक और पारिवारिक संरचना को मजबूती देते हैं। उसी में से एक व्रत है जीवितपुत्र। जीवितपुत्र का व्रत यानी जीवित पुत्र के लिए रखा जाने वाला व्रत। यह व्रत वह सभी सौभाग्यवती स्त्रियां रखती हैं जिनको पुत्र होते हैं। साथ ही जिनके पुत्र नहीं होते वह भी पुत्र कामना और बेटी की लंबी आयु के लिए यह व्रत रखती हैं।
आश्विन मास के कृष्णपक्ष की प्रदोषकाल-व्यापिनी अष्टमी के दिन माताएं अपने पुत्रों की दीर्घायु, स्वास्थ्य और सम्पन्नता के लिए यह व्रत करती हैं। इसे ग्रामीण इलाकों में 'जीउतिया' के नाम से जाना जाता है। उत्तर प्रदेश में इस व्रत की बडी मान्यता है माताएं इस व्रत को बडी श्रद्धा के साथ करती हैं। वही टाण्डा क्षेत्र मे स्थित हनुमान गढी घाट पर जीवित पुत्र का पूजा का जमावड़ा लगने लगता है। लोग अपनी पुत्र की दीर्घायु आयु के लिए सरयू नदी पर पूजा अर्चना करती हैं। महिलाएं स्वयं स्नान करके भगवान सूर्य नारायण की प्रतिमा को स्नान कराती हैं धूप, दीप आदि से आरती करने के बाद जीवित पुत्रिका व्रत कथा सुनती हैं। ऐसी मान्यता है कि बिना कथा सुने उनका व्रत पूरा नहीं माना जाता है। इस दिन बाजरा से मिश्रित पदार्थ भोग में लगाये जाता है। अगर आप किसी मंदिर में नहीं जा पा रहीं हैं तो व्रती प्रदोष काल में गाय के गोबर से आंगन को लीपने के बाद परिष्कृत करके छोटा सा तालाब भी जमीन खोदकर बनाने चाहिए। तालाब के निकट एक पाकड़ की डाल लाकर खड़ा कर शालिवाहन राजा के पुत्र धर्मात्मा जीमूतवाहन की कुश निर्मित मूर्ति जल या मिट्टी के पात्र में स्थापित कर पीली और लाल रूई से उसे अलंकृत कर धूप, दीप, अक्षत, फूल, माला एवं विविध प्रकार के नैवेद्यों के साथ पूजन करना चाहिए। जीवितपुत्र व्रत का महत्व जीवितपुत्र व्रत की ऐसी मान्यता है कि व्रत रखने वाली माताओं के पुत्र दीर्घजीवी होते हैं और उनके जीवन में आने वाली सारी विपत्तियां अपने आप टल जाती है। इस व्रत को करने से पुत्र शोक नही होता है इस व्रत का स्त्री समाज में बहुत ही महत्व है इस व्रत में सूर्य नारायण की पूजा की जाती है ।
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